यूँ तो मैं
दुश्मनों के काफिलों से भी
सर उठा के गुजर जाता हूँ...
बस,
खौफ तो अपनों की
गलियों से गुजरने में लगता है,
कि कोई धोखा ना दे दे |।।
यूँ तो मैं
दुश्मनों के काफिलों से भी
सर उठा के गुजर जाता हूँ...
बस,
खौफ तो अपनों की
गलियों से गुजरने में लगता है,
कि कोई धोखा ना दे दे |।।
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